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खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Class 10 Social Science Geography Chapter 5 Minerals And Energy Resources Khanij Tatha Oorja Sansaadhan

खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

खनिज क्या है?

  • भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है। 
  • खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं जिसमें कठोर हीरा व नरम चूना तक सम्मिलित हैं।
  • चट्टानें खनिजों के समरूप तत्त्वों के यौगिक हैं। 
  • कुछ चट्टानें जैसे चूना पत्थर केवल एक ही खनिज से बनी हैं; लेकिन अधिकतर चट्टानें विभिन्न अनुपातों के अनेक खनिजों का योग हैं। 
  • 2000 से अधिक खनिजों को पहचान की जा चुकी है. लेकिन अधिकतर च‌ट्टानों में केवल कुछ ही खनिजों की बहुतायत है।
  • एक खनिज विशेष जो निश्चित तत्त्वों का योग है. 
  • उन तत्त्वों का निर्माण उस समय के भौतिक व रासायनिक परिस्थितियों का परिणाम है। 
  • इसके फलस्वरूप ही खनिजों में विविध रंग, कठोरता, चमक, घनत्व तथा विविध क्रिस्टल पाए जाते हैं। 
  • भू-वैज्ञानिक इन्हीं विशेषताओं के आधार पर खनिजों का वर्गीकरण करते हैं।



खनिजों का वर्गीकरण :

1. धात्विक खनिज 

  • लौह धातु: जिन धातुओं में लौह के अंश पाए जाते है। जैसे लौह अयस्क मैंगनीज कोबाल्ट मिकल आदि । 
  • अलौह धातु: जिन धातुओं के अंश नहीं पाए जाते है। जैसे तांबा बॉक्साइट आदि । 
  • बहुमूल्य खनिज: जिनकी मात्रा काफी मत होती है इसलिए ये बहुत मूल्यवान होते है। जैसे सोना चांदी प्लेटिनम आदि। 

2. अधात्विक  खनिज 

जिन खनिजों में धातु अंश नहीं पाए जाते, उन्हें अधात्विक खनिज कहते हैं जैसे अभ्रक नमक पोटाश सल्फर चुना पत्थर तथा बलुआ पत्थर आदि। 

3. ऊर्जा खनिज

वे खनिज जो ऊर्जा प्रदान करते है। जैसे: कोयला पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस आदि ।



खनिजों की उपलब्धता

  • खनिज 'अयस्कों' में पाए जाते हैं। 
  • किसी भी खनिज में अन्य अवयवों या तत्त्वों के मिश्रण या संचयन हेतु 'अयस्क' शब्द का प्रयोग किया जाता है। 
  • खनन का आर्थिक महत्त्व तभी है जब अयस्क में खनिजों का संचयन पंर्याप्त मात्रा में हो। 
  • खनिजों के खनन की सुविधा इनके निर्माण व संरचना पर निर्भर हैं। 
  • खनन सुविधा इसके मूल्य को निर्धारित करती है। 



खनिज कहाँ पाए जाते है :

1. आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व ददरों में मिलते हैं। छोटे जमाव शिराओं के रूप में और बृहत् जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं। 

2. अनेक खनिज अवसादी चट्टानों के अनेक खनिज संस्तरों या परतों में पाए जाते हैं। इनका निर्माण क्षैतिज परतों में निक्षेपण, संचयन व जमाव का परिणाम है। कोयला तथा कुछ अन्य प्रकार के लौह अयस्कों का निर्माण लंबी अवधि तक अत्यधिक ऊष्मा व दबाव का परिणाम है। 

3. खनिजों के निर्माण की एक अन्य विधि धरातलीय चट्टानों का अपघटन है। चट्टानों के घुलनशील तत्त्वों के अपरदन के पश्चात् अयस्क वाली अवशिष्ट चट्टानें रह जाती हैं। बॉक्साइट का निर्माण इसी प्रकार होता है।

4. पहाड़ियों के आधार तथा घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में भी कुछ खनिज पाए जाते हैं। ये निक्षेप 'प्लेसर निक्षेप' के नाम से जाने जाते हैं। इनमें प्रायः ऐसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित नहीं होते। इन खनिजों में सोना, चाँदी, टिन व प्लेटिनम प्रमुख हैं।

5. महासागरीय जल में भी विशाल मात्रा में खनिज पाए जाते हैं लेकिन इनमें से अधिकांश के व्यापक रूप से विसरित होने के कारण इनकी आर्थिक सार्थकता कम है। 



रैट होल (Rat Hole)

  • भारत में अधिकांश खनिज राष्ट्रीयकृत हैं और इनका निष्कर्षण सरकारी अनुमति के पश्चात् ही सम्भव है
  • किन्तु उत्तर-पूर्वी भारत के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में, खनिजों का स्वामित्व व्यक्तिगत व समुदायों को प्राप्त है। 
  • मेघालय में कोयला, लौह अयस्क, चूना पत्थर व डोलोमाइट के विशाल निक्षेप पाए जाते हैं। 
  • जोवाई व चेरापूँजी में कोयले का खनन परिवार के सदस्य द्वारा एक लंबी संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे रैट होल खनन कहते हैं। 
  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इन क्रियाकलापों को अवैध घोषित किया है और सलाह दी है कि इसे तुरंत रोक दिया जाना चाहिए।
  • प्रायद्वीपीय चट्टानों में कोयले, धात्विक खनिज, अभ्रक व अन्य अनेक अधात्विक खनिजों के अधिकांश भंडार संचित हैं। 
  • प्रायद्वीप के पश्चिमी और पूर्वी पार्श्वों पर गुजरात और असम की तलछटी चट्टानों में अधिकांश खनिज तेल निक्षेप पाए जाते हैं। 
  • प्रायद्वीपीय शैल क्रम के साथ राजस्थान में अनेक अलौह खनिज पाए जाते हैं। 



लौह खनिज

  • लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन चौथाई भाग का योगदान करते हैं। 
  • ये धातु शोधन उद्योगों के विकास को मजबूत आधार प्रदान करते हैं। 
  • भारत अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के पश्चात् बड़ी मात्रा में धात्विक खनिजों का निर्यात करता है।



लौह अयस्क (Iron Ore)

  • लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है तथा औद्योगिक विकास की रीढ़ है। 
  • भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं। 
  • भारत उच्च कोटि के लोहांशयुक्त लौह अयस्क में धनी है। 
  • मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है जिसमें 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है। 
  • इसमें सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं, जो विद्युत उद्योगों में विशेष रूप से उपयोगी हैं। 
  • हेमेटाइट सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है। किंतु इसमें लोहांश की मात्रा मैग्नेटाइट की अपेक्षा थोड़ी-सी कम होती है। 97 प्रतिशत ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और झारखंड उत्पादन में आगे है। 



भारत में लौह अयस्क की पेटियाँ हैं -

  • ओडिशा-झारखंड पेटी:- ओडिशा में उच्च कोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह अयस्क मयूरभंज व केंदूझर जिलों में बादाम पहाड़ खदानों से निकाला जाता है। झारखंड के सिंहभूम जिले में गुआ तथा नोआमुंडी से हेमेटाइट अयस्क का खनन किया जाता है।
  • दुर्ग-बस्तर-चन्द्रपुर पेटी: यह पेटी महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ राज्यों के अंतर्गत पाई जाती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में बेलाडिला पहाड़ी श्रृंखलाओं में अति उत्तम कोटि का हेमेटाइट पाया जाता है जिसमें इस गुणवत्ता के लौह के 14 जमाव मिलते हैं। इन खदानों का लौह अयस्क विशाखापट्टनम् पत्तन से जापान तथा दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।
  • बल्लारि-चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलूरु-तुमकूरु पेटी :- कर्नाटक की इस पेटी में लौह अयस्क की बृहत् राशि संचित है। कर्नाटक में पश्चिमी घाट में अवस्थित कुद्रेमुख की खानें शत् प्रतिशत निर्यात इकाई हैं। कुद्रेमुख निक्षेप संसार के सबसे बड़े निक्षेपों में से एक माने जाते हैं। 
  • महाराष्ट्र-गोआ पेटी :- यह पेटी गोआ तथा महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी जिले में स्थित है। यद्यपि यहाँ का लोहा उत्तम प्रकार का नहीं है तथापि इसका दक्षता से दोहन किया जाता है। मरमागाओ पत्तन से इसका निर्यात किया जाता है।



मैंगनीज

  • मैंगनीज मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है। 
  • एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किग्रा. मैंगनीज की आवश्यकता होती है। 
  • इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ व पेंट बनाने में किया जाता है।



अलौह खनिज

  • भारत में अलौह खनिजों की संचित राशि व उत्पादन अधिक संतोषजनक नहीं है। 
  • ये खनिज जिनमें ताँबा, बॉक्साइट, सीसा और सोना आते हैं, धातु शोधन, इंजीनियरिंग व विद्युत उद्योगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 



ताँबा

  • भारत में ताँबे के भंडार व उत्पादन क्रांतिक रूप से न्यून हैं। 
  • घातवर्ध्य , तन्य और ताप सुचालक होने के कारण ताँबे का उपयोग मुख्यतः बिजली के तार बनाने, इलैक्ट्रोनिक्स और रसायन उद्योगों में किया जाता है। 
  • मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न करती हैं। 
  • झारखंड का सिंहभूम जिला भी ताँबे का मुख्य उत्पादक है। 
  • राजस्थान की खेतड़ी खदानें भी ताँबे के लिए प्रसिद्ध थीं। 



बॉक्साइट

  • सबसे अधिक एल्यूमिना क्ले (Clay) जैसे दिखने वाले पदार्थ बॉक्साइट से ही प्राप्त किया जाता है 
  • बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्यूमिनियम सीलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन से होती है।
  • एल्यूमिनियम एक महत्त्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है।
  • इसमें अत्यधिक घातवर्ध्यता (malleability) भी पाई जाती है। 
  • भारत में बॉक्साइट के निक्षेप मुख्यतः अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियों तथा बिलासपुर-कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते हैं।
  • ओडिशा भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है, यहाँ कोरापुट जिले में पंचपतमाली निक्षेप राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण बॉक्साइट निक्षेप हैं।
  • एल्यूमिनियम की खोज के बाद सम्राट नेपोलियन तृतीय अपने कपड़ों पर एल्यूमिनियम से बने हुक व बटन पहनता था तथा अपने खास मेहमानों को एल्यूमिनियम से बने बर्तनों में भोजन कराता, तथा आम मेहमानों को सोने व चाँदी के बर्तनों में भोजन परोसा जाता। 



अधाात्विक खनिज

अभ्रक

  • अभ्रक एक ऐसा खनिज है जो प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है। 
  • इसका चादरों में विपाटन (split) आसानी से हो सकता है। ये परतें इतनी महीन हो सकती हैं कि इसकी एक हजार परतें कुछ सेंटीमीटर ऊँचाई में समाहित हो सकती हैं। 
  • अभ्रक पारदर्शी, काले, हरे, लाल, पीले अथवा भूरे रंग का हो सकता है।
  • इसकी सर्वोच्च परावैद्युत शक्ति, ऊर्जा हास का निम्न गुणांक, विंसवाहन के गुण और उच्च वोल्टेज की प्रतिरोधिता के कारण अभ्रक विद्युत व इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले अपरिहार्य खनिजों में से एक है।
  • अभ्रक के निक्षेप छोटानागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारों पर पाए जाते हैं। 
  • बिहार-झारखंड की कोडरमा- गया-हजारीबाग पेटी अग्रणी उत्पादक हैं। 
  • राजस्थान के मुख्य अभ्रक उत्पादक क्षेत्र अजमेर के आस पास हैं। 
  • आंध्र प्रदेश की नेल्लोर अभ्रक पेटी भी देश की महत्त्वपूर्ण उत्पादक पेटी है।



चट्टानी खनिज

  • चूना पत्थर (Limestone) चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैगनीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है। 
  • यह अधिकांशतः अवसादी च‌ट्टानों में पाया जाता है। 
  • चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल होता है। 


 

खनन के जोखिम /खतरे

  • खदानों में काम करने वाले श्रमिक लगातार धूल व हानिकारक धुएँ में साँस लेते हुए फेफड़ों संबंधी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। 
  • खदानों की छतों के गिरने, सैलाब आने , कोयले की खदानों में आग लगने आदि, खतरे खदान श्रमिकों के लिए स्थाई हैं। 
  • खदान क्षेत्रों में खनन के कारण जल स्रोत संदूषित हो जाते हैं। 
  • अवशिष्ट पदार्थों तथा खनिज तरल के मलबे के खत्ता लगाने से भूमि व मिट्टी का अवक्षय होता है और सरिताओं तथा नदियों का प्रदूषण बढ़‌ता है।
  • खनन को घातक उद्योग (Killer Industry) बनने से रोकने के लिए दृढ़ सुरक्षा विनियम और पर्यावरणीय कानूनों का क्रियांवयन अनिवार्य है।



खनिजों का संरक्षण

  • हम सभी को उद्योग और कृषि की खनिज निक्षेपों और उनसे विनिर्मित पदार्थों पर भारी निर्भरता  है।
  • खनन योग्य निक्षेप  भू-पर्पटी का एक प्रतिशत है । 
  • जिन खनिज संसाधनों के निर्माण व सांद्रण में लाखों वर्ष लगे हैं, हम उनका शीघ्रता से उपभोग कर रहे हैं। 
  • खनिज निर्माण की भूगर्भिक प्रक्रियाएँ इतनी धीमी है कि उनके वर्तमान उपभोग की दर की तुलना में उनके पुनर्भरण की दर अपरिमित रूप से थोड़ी है। 
  • इसीलिए खनिज संसाधन सीमित तथा अनवीकरण योग्य हैं। 
  • समृद्ध खनिज निक्षेप हमारे देश की अत्यधिक मूल्यवान संपत्ति हैं, लेकिन ये अल्पजीवी हैं। 
  • अयस्कों के सतत् उत्खनन से लागत बढ़ती है क्योंकि खनिजों के उत्खनन की गहराई बढ़ने के साथ उनकी गुणवत्ता घटती जाती है।



ऊर्जा संसाधन

  • ऊर्जा सभी क्रियाकलापों के लिए आवश्यक हैं। 
  • खाना पकाने में, रोशनी व ताप के लिए, गाड़ियों के संचालन तथा उद्योगों में मशीनों के संचालन में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  • ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत से किया जाता है। 


ऊर्जा संसाधनों का वर्गीकरण: 

परंपरागत संसाधन : लकड़ी, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत सम्मिलित हैं।

गैर-परंपरागत संसाधन :  सौर, पवन, ज्वारीय, भू-तापीय, बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा शामिल किये जाते हैं। 



परंपरागत ऊर्जा के स्रोत

  • कोयला भारत में कोयला बहुतायात में पाया जाने बाला जीवाश्म ईंधन है। 
  • यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का महत्त्वपूर्ण भाग प्रदान करता है। 
  • इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन तथा उद्योगों और घरेलू जरूरतों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है। 
  • भारत अपनी वाणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मुख्यतः कोयले पर निर्भर है।
  • कोयले का निर्माण पादप पदार्थों के लाखों वर्षों तक संपीडन से हुआ है। 
  • संपीडन की मात्रा, गहराई और दबने के समय के आधार पर कोयला अनेक रूपों में पाया जाता है। 


कोयले का वर्गीकरण

  • एंथ्रेसाइट : सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है।
  • बिटुमिनस : गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयले को बिटुमिनस कोयला कहा जाता है। धातुशोधन में उच्च श्रेणी के बिटुमिनस कोयले का प्रयोग किया जाता है जिसका लोहे के प्रगलन में विशेष महत्त्व है।
  • लिग्नाइट : एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है। यह मुलायम होने के साथ अधिक नमीयुक्त होता है। लिग्नाइट के प्रमुख भंडार तमिलनाडु के नैवेली में मिलते हैं और विद्युत उत्पादन में प्रयोग किए जाते हैं। 
  • पीट : दलदलों में क्षय होते पादपों से पीट उत्पन्न होता है. जिसमें कम कार्बन, नमी की उच्च मात्रा व निम्न ताप क्षमता होती है। 


भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है 

1. गोंडवाना 

  • इसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक है 
  • गोंडवाना कोयले, जो धातुशोधन कोयला है, के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी (पश्चिमी बंगाल तथा झारखंड), झरिया, रानीगंज, बोकारो में स्थित हैं जो महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं। गोदावरी, महानदी, सोन व वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं।

2. टरशियरी निक्षेप 

  • ये लगभग लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं। 
  • उत्तर-पूर्वी राज्यों मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड में पाया जाता है।
  • जिसका प्रयोग करने पर भार घटता है क्योंकि यह राख में परिवर्तित हो जाता है। इसी कारण भारी उद्योग तथा ताप विद्युत गृह कोयला क्षेत्रों अथवा उनके निकट ही स्थापित किये जाते हैं।



पेट्रोलियम

  • भारत में कोयले के पश्चात् ऊर्जा का दूसरा प्रमुख साधन पेट्रोलियम या खनिज तेल है। 
  • यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक और अनेक विनिर्माण उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करता है। 
  • तेल शोधन शालाएँ संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक तथा असंख्य रासायन उद्योगों में एक नोडीय बिंदु का काम करती हैं।
  • भारत में अधिकांश पेट्रोलियम की उपस्थिति टरशियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति व भ्रंश ट्रैप में पाई जाती है। 
  • वलन, अपनति और गुंबदों वाले प्रदेशों में यह वहाँ पाया जाता है जहाँ उद्ववलन के शीर्ष में तेल ट्रैप हुआ होता है। 
  • तेल धारक परत बालुपत्थर होता है जिसमें से तेल प्रवाहित हो सकता है। 
  • मध्यवर्ती असरंध्र परतें तेल को ऊपर उठने व नीचे रिसने से रोकती हैं।
  • पेट्रोलियम संरध्र और असरंध्र चट्टानों के बीच भ्रंश ट्रैप में भी पाया जाता है। 
  • प्राकृतिक गैस हल्की होने के कारण खनिज तेल के ऊपर पाई जाती है।
  • भारत में मुम्बई हाई, गुजरात और असम प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं। 
  • अंकलेश्वर गुजरात का सबसे महत्त्वपूर्ण तेल क्षेत्र है। 
  • असम भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य है। 
  • डिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन इस राज्य के महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।



प्राकृतिक गैस

  • प्राकृतिक गैस पेट्रोलियम के भंडार के साथ पाई जाती है और जब कच्चे तेल को सतह पर लाया जाता है तो यह मुक्त हो जाती है। 
  • इसका उपयोग घरेलू और औद्योगिक ईंधन के रूप में किया जा सकता है। 
  • इसका उपयोग बिजली क्षेत्र में ईंधन के रूप में बिजली पैदा करने के लिए, उद्योगों में हीटिंग के उद्देश्य के लिए, रासायनिक, पेट्रोकैमिकल और उर्वरक उद्योगों में कच्चे माल के रूप में, परिवहन ईंधन के रूप में और खाना पकाने के ईंधन के रूप में किया जाता है। 
  • गैस के बुनियादी ढाँचे में विस्तार और स्थानीय शहर गैस वितरण, प्राकृतिक गैस पसंदीदा परिवहन ईंधन (CNG) और घरों में खाना पकाने के ईंधन (LPG) के रूप में भी उभर रहा है। 
  • भारत के प्रमुख गैस भंडार मुंबई हाई और अन्य संबद्ध क्षेत्र पश्चिमी तट पर पाए जाते हैं जिनको खंभात बेसिन में पाए जाने वाले क्षेत्र संपूरित करते हैं। 
  • पूर्वी तट पर - कृष्णा-गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के नए भंडार की खोज की गई है।
  • गेल द्वारा निर्मित पहली 1,700 किलोमीटर लंबी हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर (एच.वी.जे.) क्रॉस कंट्री गैस पाइपलाइन ने मुंबई हाई और बसीन गैस क्षेत्रों को पश्चिमी और उत्तरी भारत में विभिन उर्वरक, बिजली और औद्योगिक परिसरों से जोड़ा है। 
  • इन गैस पाइप लाइनों ने भारतीय गैस बाजार के विकास को गति प्रदान की। 
  • भारत के गैस बुनियादी ढाँचे का विस्तार क्रॉस कंट्री पाइपलाइनों के 1700 किलोमीटर से बढ़कर 18500 किलोमीटर तक, दस गुना से अधिक हो गया है और पूर्वोत्तर राज्यों सहित देश भर में सभी गैस स्रोतों और उपभोक्ता बाजारों को जोड़कर गैस ग्रिड के रूप में जल्द ही 34000 किलोमीटर से अधिक तक पहुँचने की सम्भावना है।



विद्युत

  • आधुनिक विश्व में विद्युत के अनुप्रयोग इतने ज्यादा विस्तृत हैं कि इसके प्रति व्यक्ति उपभोग को विकास का सूचकांक माना जाता है। 
  • विद्युत मुख्यतः दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है- 
  • प्रवाही जल से जो हाइड्रो-टरबाइन चलाकर जल विद्युत उत्पन्न करता है
  • अन्य ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस को जलाने से टरबाइन चलाकर ताप विद्युत उत्पन्न की जाती है। 
  • एक बार उत्पन्न हो जाने के बाद विद्युत एक जैसी ही होती है। तेज बहते जल से जल विद्युत उत्पन्न की जाती है जो एक नवीकरण योग्य संसाधन है। 
  • भारत में अनेक बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ हैं जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं; जैसे- भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी कारपोरेशन और कोपिली हाइडल परियोजना आदि।



गैर-परंपरागत ऊर्जा के साधन

  • ऊर्जा के बढ़ते उपभोग ने देश को कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्मी ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर कर दिया है। 
  • गैस व तेल की बढ़ती कीमतों तथा इनकी संभाव्य कमी ने भविष्य में ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा के प्रति अनिश्चितताएँ उत्पन्न कर दी हैं। 
  • इसके राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। 
  • इसके अतिरिक्त जीवाश्मी ईंधनों का प्रयोग गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करता है। 
  • अतः नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों जैसे - सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैविक ऊर्जा तथा अवशिष्ट पदार्थ जनित ऊर्जा के उपयोग की बहुत जरूरत है। 
  • ये ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधन कहलाते हैं।
  • भारत धूप, जल तथा जीवभार साधनों में समृद्ध है। 
  • भारत में नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों के विकास हेतु बृहत् कार्यक्रम भी बनाए गए हैं।


परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा

  • परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है। 
  • जब ऐसा परिवर्तन किया जाता है तो ऊष्मा के रूप में काफी ऊर्जा विमुक्त होती है और इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है। 
  • यूरेनियम और थोरियम का प्रयोग परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। 
  • केरल में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में थोरियम की मात्रा पाई जाती है।



सौर-ऊर्जा

  • भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है। 
  • यहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम संभावनाएँ हैं। 
  • फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है। 
  • भारत के ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। 
  • कुछ बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र देश के विभिन्न भागों में स्थापित किए जा रहे हैं। 
  • ऐसी अपेक्षा है कि सौर ऊर्जा के प्रयोग से ग्रामीण घरों में उपलों तथा लकड़ी पर निर्भरता को न्यूनतम किया जा सकेगा।
  • यह तरीका पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा और कृषि में भी खाद्य की पर्याप्त आपूर्ति होगी।



पवन ऊर्जा

  • भारत में पवन ऊर्जा के उत्पादन की महान संभावनाएँ हैं। 
  • भारत में पवन ऊर्जा फार्म के विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है। 
  • इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप में भी महत्त्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं। 
  • नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए जाने जाते हैं।



बायोगैस

  • ग्रामीण इलाकों में झाड़ि‌यों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपभोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है। 
  • जैविक पदाथों के अपघटन से गैस उत्पन्न होती है, जिसकी तापीय सक्षमता मिट्टी के तेल, उपलों व चारकोल की अपेक्षा अधिक होती है। 
  • बायोगैस संयत्र नगरपालिका, सहकारिता तथा निजी स्तर पर लगाए जाते हैं। 
  • पशुओं का गोबर प्रयोग करने वाले संयंत्र ग्रामीण भारत में 'गोबर गैस प्लांट' के नाम से जाने जाते हैं। 
  • ये किसानों को दो प्रकार से लाभांवित करते हैं- 

  • ऊर्जा के रूप में 

  •  उन्नत प्रकार के उर्वरक के रूप में। 
  • बायोगैस अब तक पशुओं के गोबर का प्रयोग करने में सबसे दक्ष है। 
  • यह उर्वरक की गुणवत्ता को बढ़ाता है और उपलों तथा लकड़ी को जलाने से होने वाले वृक्षों के नुकसान को रोकता है।



ज्वारीय ऊर्जा

  • महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है। 
  • सँकरी खाड़ी के आर-पार बाढ़ द्वार बना कर बाँध बनाए जाते हैं। 
  • उच्च ज्वार में इस सँकरी खाड़ीनुमा प्रवेश द्वार से पानी भीतर भर जाता है और द्वार बन्द होने पर बाँध में ही रह जाता है। 
  • बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतरने पर, बाँध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की तरफ बहाया जाता है जो इसे ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है।
  • भारत में खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में और पश्चिम बंगाल में सुंदर वन क्षेत्र में गंगा के डेल्टा में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपस्थित हैं।



भू-तापीय ऊर्जा

  • पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।
  • भू-तापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में होती है क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी प्रगामी ढंग से तप्त होती जाती है। 
  • जहाँ भी भू-तापीय प्रवणता अधिक होती है वहाँ उथली गहराइयों पर भी अधिक तापमान पाया जाता है। 
  • ऐसे क्षेत्रों में भूमिगत जल चट्टानों से ऊष्मा का अवशोषण कर तप्त हो जाता है। 
  • यह इतना तप्त हो जाता है कि यह पृथ्वी की सतह की ओर उठता है तो यह भाप में परिवर्तित हो जाता है। 
  • इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलाने और विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।



भू-तापीय ऊर्जा के दोहन के लिए भारत में दो प्रायोगिक परियोजनाएँ शुरू की गई हैं:

1. हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी में स्थित है 

2. लद्दाख में पूगा घाटी में स्थित है।


ऊर्जा संसाधनों का सरंक्षण 

  • आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक आधारभूत आवश्यकता है। 
  • राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक सेक्टर कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य व घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा के निवेश की आवश्यकता है। 
  • स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् आर्थिक विकास की योजनाओं को चालू रखने के लिए ऊर्जा की बड़ी मात्रा की आवश्यकता थी। 
  • जिससे पूरे देश में ऊर्जा के सभी प्रकारों का उपभोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
  • ऊर्जा के विकास के सतत् पोषणीय मार्ग के विकसित करने की तुरंत आवश्यकता है। 
  • ऊर्जा संरक्षण की प्रोन्नति और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का बढ़ता प्रयोग सतत् पोषणीय ऊर्जा के दो आधार हैं।



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